तुम्हे पाना हि अगर आगज़ का अंत होता तो शायद ये कहानी हि न होती ,
शायद चन्द लम्हो के उन मुल्कतो ने मुझे यु दीवाना करने कि शज़िस न कि होती .
उन मुस्कुरते चेह्रओ को देख कर आज भि अंखे नम होती है ,
एह्शसो मे उन रिस्तो को ज़िंदा रखने कि आश अज भि रहे हि जति है .
भूलना आसन था शायद भुल भि जता पर वो दर्द यकिन दिल राह था कि हमारे बिच कुछ तो था ,
आगज़ न साहि अनज़म यादगार और एक साथ नसीब था.
पृथ्वीराज शर्मा
शायद चन्द लम्हो के उन मुल्कतो ने मुझे यु दीवाना करने कि शज़िस न कि होती .
उन मुस्कुरते चेह्रओ को देख कर आज भि अंखे नम होती है ,
एह्शसो मे उन रिस्तो को ज़िंदा रखने कि आश अज भि रहे हि जति है .
भूलना आसन था शायद भुल भि जता पर वो दर्द यकिन दिल राह था कि हमारे बिच कुछ तो था ,
आगज़ न साहि अनज़म यादगार और एक साथ नसीब था.
पृथ्वीराज शर्मा
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