Monday 18 May 2015

तुम्हे पाना हि अगर आगज़ का अंत होता तो शायद ये कहानी हि न होती ,

शायद चन्द लम्हो के उन मुल्कतो ने मुझे यु दीवाना करने कि शज़िस न कि होती .

उन मुस्कुरते चेह्रओ को देख कर आज भि अंखे नम होती है ,

एह्शसो मे उन रिस्तो को ज़िंदा रखने कि आश अज भि रहे हि जति है .

भूलना आसन था शायद भुल भि जता पर वो दर्द यकिन दिल राह था कि हमारे बिच कुछ तो  था ,

आगज़ न साहि अनज़म यादगार और एक साथ नसीब था.
पृथ्वीराज शर्मा