Friday 12 May 2017

adhura kirddar

 .अधूरा किरदार 

यु मानो इन्तिज़ार के आसार बस  ख़तम होने  को थे,
उम्र वाही कही थमी रही .

वो तो पन्नो को यु ही पलटती रही ,
हम हि किसी किरदार सा पीछे छुटते चले गए .

उन्होंने तो सब भुला नया साहिल चुन लिया 
हम किनारे खड़े आज भि बारिश में भीग रहे .

 मस्रुफिअतो का दौर है ख्वाइशो पर अब धुल जमने लगी है 
पर कहिनी यही खत्म नही होती  ……

सिलसिला बदला में वाही था !

कई फिर्दोश आई ,कुछ ने पन्ने पलटे ,कुछ ने नजरंदाज़ किया
कुछ बर्दाश न कर सकी कुछ उलझ गई ,इन गीली लकड़ी से किरदार में .

 ना जला पाई मुझेऔर ना भुझा पाई ….

शायद ये सब एक इत्तिफाक़ ही था !
.

पर उम्मीद का होसला तो देखो !  ,इन्तीजर उसका है जिनको एहेसास तक नही  ,

में एक वक्त था किताबो में सिमट गया ,तुम एक लमहा थी खयालो में कही ओझल हो

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