Saturday 28 December 2019

Dogalapan

कुछ जो आइने के दोगलेपन से वाकिफ ना थे,
कुछ जो हमशक्ले इबादत में मशरूफ थे
कुछ जिस्म जो तख्त पे ताराशे  जाने अभी बाकी थे ,
उनके गलियारे की सिसकियाँ भूख के टसुए में फीकी पढ़नी अभी बाकी थी,
उनके खोखले से सासो के खोखलेपन में एक अपनपन सा लगता है ,जो बचपन जिया भी नहीं वो मानो मारता सा लगता है,
इनकी ख़ामोशीयो को एक तलब  का सुकून  देसकू,तो इनकी सांसे छीन कर भी देना अब मानो एक मुक्कदर सा लगता है।




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